Monday, November 24, 2014

जन्म के लिए

वह एक गर्म जेठ की दुपहर थी
अहाते में एक चिड़ियाँ बार-बार 
पानी से भरे टब में कभी अपना सिर डुबाती
कभी पंख कभी पूछ और शरीर को झटक देती
तभी घर में मेरे जन्म के उल्लास का शोर हुआ
वह चिड़ियाँ चौंक कर उड़ गई 

अपने जन्म के लिए 
मैं उस चिड़ियाँ से क्षमा मांगता हूँ

-अहर्निशसागर-

लौटना

एक दिन हम सब लौट आते हैं 
लेकिन लौटने का दिन इतने दिनों बाद आता हैं 
कि हम अपने ही घर का दरवाजा खटखटाते हैं
और बार-बार पूछते हैं -
क्या कोई हैं ?
क्या कोई अंदर हैं ?

-अहर्निशसागर-

हारूँगा












हारूँगा
लेकिन एक योद्धा की तरह नहीं
असल में एक योद्धा की अंतिम हार ही
उसकी विजय होती 
जिस तरह विजेता हार और हार विजेता पैदा करती है 
जिस तरह युद्ध हथियार और फिर हथियार युद्ध पैदा करते हैं
ऐसे किसी सिलसिले के क्रम में नहीं हारूँगा 

बेटी पिता की तरफ दोनों हाथ बढ़ाती हैं
दोनों हाथों में लकड़ी की दो फिरकियाँ हैं
'पप्पा, ये आपकी...और ये मेरी '
अगर मेरी फिरकी पहले घूमना बंद हुई
वह पंजे के बल आँगन में ख़ुशी से उछल पड़ेगी

किसी शासक या शोषक से नहीं
एक बच्चे से हारूँगा

अचानक फिरकी की तरह
एक तरफ लुढ़क जाऊँगा ।


-अहर्निशसागर-

जरूर मृत्यु एक गिलहरी होगी















अगर कुछ भी हैं
जिसे अमरत्व प्राप्त हैं
तो जरूर मृत्यु एक गिलहरी होगी
जो चीज़ों को आधा-अधूरा कुतर कर छोड़ देती हैं
जीवन चाहे कितना ही असाधारण रहा हो 
मृत्यु साधारण होनी चाहिए
विस्लाव शिम्बोर्स्का के टिड्डे की तरह
मसलन, झुण्ड उड़ गया
और हम एक कांटे में बिंधे रह गए
मैं हाँक लगाकर खेतों से तोते उड़ाया करता था
कभी एक साथ इतने तोते डरकर उड़ जाते
कि भ्रम हो जाता,
लगता तोते बैठे रह गए और खेत उड़ गया
ऐसे ही किसी भ्रम की आड़ में उड़ जाना चाहता हूँ
जैसे तुझसे सट कर मैं बैठा रह गया
.....और देह उड़ गई
मैं किराये के कमरे बदलता रहता हूँ
शहर में भी और संसार में भी
देह के भी और अ-देह के भी
पिछली बार जब नए कमरे में रहने आया
कमरे में मेज पर एक गुलदान पड़ा था
उसमें कई बार फूल बदले गए थे
एक दिन अंतिम बार बदले गए
फिर कभी नहीं बदले गए

-अहर्निशसागर-